Saturday, April 28, 2018

बेखबर

सूरज को शायद
पता भी नही
जीवन चल रहा है
पृथ्वी पे उसके कारण

मालूम ही नही 
फ़ूलों को 
महकती है दुनिया
उनके होने से

अक्सर देखा है
तुम्हे 
कभी आंखें मूंदे
कभी चलते
बेख़बर

इसका इल्म
तक नहीं तुमको
कितनी बार
थक कर बैठे हुए
लिया है बंद होठों
से तुम्हारा नाम

बनाया है तुम्हारा
चेहरा बंद आंखों ने
और हमेशा
देखा है 
अस्तित्व हल्का 
सा ज़्यादा
खूबसूरत है
सिर्फ इक
तुम्हारे होने से

तुम्हे खबर नही
पर तुम
जैसे हो
वैसे होने में
तुमने
कितना बड़ा एहसान 
किया है मुझपे।

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