सूरज को शायद
पता भी नही
जीवन चल रहा है
पृथ्वी पे उसके कारण
मालूम ही नही
फ़ूलों को
महकती है दुनिया
उनके होने से
अक्सर देखा है
तुम्हे
कभी आंखें मूंदे
कभी चलते
बेख़बर
इसका इल्म
तक नहीं तुमको
कितनी बार
थक कर बैठे हुए
लिया है बंद होठों
से तुम्हारा नाम
बनाया है तुम्हारा
चेहरा बंद आंखों ने
और हमेशा
देखा है
अस्तित्व हल्का
सा ज़्यादा
खूबसूरत है
सिर्फ इक
तुम्हारे होने से
तुम्हे खबर नही
पर तुम
जैसे हो
वैसे होने में
तुमने
कितना बड़ा एहसान
किया है मुझपे।
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