Thursday, July 27, 2017

और फिर अंत में प्रतीक्षा

और फिर शब्द 
हर कहानी
हर गीत 
हर रोज़ 
हर बात
बस एक सवाल 
क्यूँ?

दिन पर दिन 
रात पर रात 
साल पर साल 
किसलिए?

और फ़िर प्रेम 
न दुनिया 
न जवाब 
न कहानी 
न सवाल 
बस तुम 

दिन पर दिन 
रात पर रात 
साल पर साल 
कब तक? 

फिर सन्नाटा 
हल्का अँधेरा 
न प्रेम 
न सवाल 
न तुम 
न जवाब  
सिर्फ मैं 

दिन पर दिन 
रात पर रात 
साल पर साल 
कैसे?

और फ़िर?

और फिर 
एक हल्की मुस्कान 
धुंधले चेहरे 
यात्रा, चलना 
दौड़ना, थकना
गिरना, उठना 
 
दिन पर दिन 
रात पर रात 
साल पर साल 

और फिर अंत में प्रतीक्षा 




Wednesday, July 26, 2017

सैम के लिए - १३ जुलाई २०१७

सपनों की गलियों में
समय बिताना बेहद
पसन्द है मुझे

पसंद हैं मुझे
सपनोँ की गलियां
इन मंदिरों, मस्जिदों 
गिरजाघरों से भी ज़्यादा

वहां घूमना 
किसी कल्पवृक्ष के तले
बैठने जैसा सुखद है


बस डर लगता है
वहां से लौट कर आने में

यथार्थ कितना क्रूर है ना
बड़ी बड़ी भौहें
बिखरे बाल, 
डरावना से चेहरा
जैसे जन्मा है तो सिर्फ
मुझे डराने के लिए 

वो कुछ नही कहता
बस सामने
बैठा रहता है
चुपचाप।
उसकी साँसों में 
सुनती है
घड़ी की टिक टिक।

और जब
 उससे मिलके
विचलित होता है मन
मैं ढूंढता हूँ
साहस उसके सामने बैठने का
कभी गीता, वेद कुरानों में 
तो कभी वीर रस की कविताओं में

और जब असहनीय 
हो जाता है
यथार्थ की आंखों में 
चुपचाप देखना

तब याद करता हूँ
सैम के शब्द
"और फिर अंत में बाघ आएगा
और सबको खा जाएगा"

फिर मैं और यथार्थ
घंटों, दिनों, सदियों तक
एक दूसरे को चुपचाप
घूरते रहते हैं।

तुम्हारे लिए - ७ जुलाई २०१७

पहाड़ों से 
निकली है नदी
जा रही हैं 
तुम्हारी तरफ

पेड़ छूने के लिए तुम्हे 
बढ़ रहेे हैं
आसमान की और
पर छू न पाएंगे

तुम्हारे न मिलने 
की वजह से
चाँद लगातार 
लगा रहा है चक्कर 
धरती के
और 
धरती सूरज के

हवा दौड़ती रहती है
एक कोने से 
दूसरे कोने तक

दिन और रात 
लगातार
भाग रहे हैं
जाने किसके पीछे

तारे, आसमान,
चाँद, पानी
बिजली, सागर
सूरज, पृथ्वी
सब पगला गए हैं

और मैं 

मैं थक के
बैठ गया हूँ
एक जगह
चुपचाप

बताओ ज़रा
कब मिलोगे।