सब तो आते हैं
तुम क्यू नहीं आते
एक भी बार
जाने अनजाने लोग
कब के बिछड़े यार
उल जलूल बातें
उलटे सीधे ख्याल
सब तो आते हैं
तुम क्यूँ नहीं आते
एक भी बार
न रुकता सा सूरज
न चलती सी रात
बेमौसम की बारिश
पतझड़ और बहार
सब तो आते हैं
तुम क्यूं नहीं आते
एक भी बार
साँझ भी आती,
भोर भी आती
ख़्वाब हैं आते
याद है आती
दोस्त हैं आते
आते दुश्मन
और कभी कभी तो
आ जाते नाराज़ रिश्तेदार
रोज़ ही यूँ चला आता है
बड़बोला सा अखबार
देखो सोच के
सोच के देखो न इक बार
सब आते हैं
तुम क्यूँ नहीं आते
एक भी बार
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