Saturday, April 28, 2018

अच्छा सुनो

अच्छा सुनो
अब मुझे 
चलना होगा

कितना खूबसूरत था
ये संयोग कि इतने
सारे ग्रहों के होते हुए भी
हम एक ही ग्रह पे जन्मे
एक ही सदी
देश में
इतने लोगों के बीच
हम मिले

और 
कितनाअद्भुत है 
कोई 
सरकार, 
धर्म, 
जाति, 
भाषा
नही आई हमारे बीच 
साथ चले हम
कितना दूर 
कितनी देर

धूप मे
हल्की सी छांव
प्यारी लगी

बरसात में
पेड़ के नीचे 
भीगे भी
और सूखे भी

ढलते सूरज
के साथ बैठे
बच्चों को खेलते
देखा
नाटक, कहानी
गीत, दर्द, खुशी
बोरियत
सब सांझा की
और भी 
वो सैंकड़ो क्षण
जिनके बारे में 
मैं कह न पाऊंगा

अच्छा सुनो
अब ये जो
रास्ते बंट रहे हैं
तुम्हे वहां जाना है
और मुझे दूसरी ओर
मैं समझता हूँ कि
तुम समझोगे 

अच्छा सुनो
मैं शायद चुप
रहूंगा इसके बाद
मगर तुम 
ध्यान से सुनना
मेरी इस चुप्पी को

मैं शायद कह नही
पाऊंगा इससे ज़्यादा
मगर तुम समझ लो
कि काफी भारी है 
ये चुप रहना

अच्छा सुनो
अब मुझे 
चलना होगा

बेखबर

सूरज को शायद
पता भी नही
जीवन चल रहा है
पृथ्वी पे उसके कारण

मालूम ही नही 
फ़ूलों को 
महकती है दुनिया
उनके होने से

अक्सर देखा है
तुम्हे 
कभी आंखें मूंदे
कभी चलते
बेख़बर

इसका इल्म
तक नहीं तुमको
कितनी बार
थक कर बैठे हुए
लिया है बंद होठों
से तुम्हारा नाम

बनाया है तुम्हारा
चेहरा बंद आंखों ने
और हमेशा
देखा है 
अस्तित्व हल्का 
सा ज़्यादा
खूबसूरत है
सिर्फ इक
तुम्हारे होने से

तुम्हे खबर नही
पर तुम
जैसे हो
वैसे होने में
तुमने
कितना बड़ा एहसान 
किया है मुझपे।

शाश्वत प्रेम

तुम्हारे 
जाने के बाद
मैंने 
आंख बंद कर
इक्कठी की 
हमारी सारी 
जीवन पर्यंत साथ 
रहने की बातें

फिर इतिहास में
ढूंढा सब
प्रेमियों को
जो 
अंतिम क्षण
तक 
प्रेम में जीने
की बातें 
कह चुके थे

समन भेजा 
फिर
शक्सपेर के 
रोमियो जूलिएट
मजनू, लैला, 
हीर रांझा
सोहनी महिवाल 
और बाकी
किरदारों को
उनके
बयान लिए और
दर्ज की 
उनकी प्रेम की
कसमें
गवाही
के तौर पे

फिर इन सब को
जोड़ कर मैंने
"शाश्वत प्रेम" 
नामक एक
ग्रंथ लिखा

और उसके पहले
पन्ने पे गढ़ दिए 
ये शब्द
"काल्पनिक हैं
इस किताब के सभी पात्र
और उनकी बातें
जिनका वास्तविकता 
से कोई संबध नही।".


अचानक

अचानक से
हथियार हाथ से 
फिसल गए

मकसद, जोश 
और मंज़िल
दूर गूंजते
शब्द 
बन गए

ये बेबस,
कमज़ोर और 
सम्मोहित होने
का मेरा
पहला अनुभव था

मुझे जानने वालों
के लिए एक
आविश्वसनीय 
अफवाह जो 
उनके सामने 
घटी थी

इस वाकये को
अब सालों हुए
और सालों हुए
तुम्हारे पीछे चलते

आज अचानक
इक सवाल
मन में
उठा है
अगर बुरा न लगे 
तो बताओ ज़रा

कितनी दूर जाने के
बाद फ़िर
पलटोगे और
फ़िर मुझे देख कर
मुस्कुराओगे।

सब तो आते हैं

सब तो आते हैं
तुम क्यू नहीं आते
एक भी बार

जाने अनजाने लोग
कब के बिछड़े यार
उल जलूल बातें
उलटे सीधे ख्याल
सब तो आते हैं
तुम क्यूँ नहीं आते
एक भी बार

न रुकता सा सूरज
न चलती सी रात
बेमौसम की बारिश
पतझड़ और बहार
सब तो आते हैं
तुम क्यूं नहीं आते
एक भी बार

साँझ भी आती,
भोर भी आती
ख़्वाब हैं आते
याद है आती
दोस्त हैं आते
आते दुश्मन
और कभी कभी तो
आ जाते नाराज़ रिश्तेदार
रोज़ ही यूँ चला आता है
बड़बोला सा अखबार

देखो सोच के
सोच के देखो न इक बार
सब आते हैं
तुम क्यूँ नहीं आते
एक भी बार